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हिंदी कहानियां - भाग 36

आज मैं आपके साथ तीन प्रेरणात्मक incidents/ stories share करूँगा| इन कहानियों को Horain Fayyaz ने भेजा है| Horain जी कोचीन, केरला की रहने वाली हैं और Tourism Industry से जुडी हुई हैं| उन्हें लिखने, पढने के साथ साथ गाने सुनने और घूमने का भी शौक है| वह समाज कार्य से भी जुडी हुई हैं और ”War on Dowry” नामक संस्था चलाती हैं|


1. अच्छाई से क्यूँ बाज़ आऊं ?


एक बार हजरत बायेजीद बुस्तामी अपने कुछ दोस्तों के साथ दरिया के किनारे बेठे थे, उनकी नज़र एक बिच्छू पर पड़ी जो पानी में डूब रहा था| हजरत ने उसे डूबने से बचाने के लिए पकड़ा तो उसने डंक मार दिया| कुछ देर बाद वो दोबारा पानी में जा गिरा , इस बार फिर हज़रत उसे बचने के लिए आगे बढे, पर उसने फिर डंक मार दिया| चार बार ऐसा ही हुआ, तब एक दोस्त से रहा न गया तो उसने पूछा हुजुर आपका ये काम हमारी समझ के बाहर है, ये डंक मार रहा है और आप इसे बचने से बाज़ नहीं आते| उन्होंने बहुत तकलीफ में मुस्कुराते हुए कहा कि जब ये बुराई से बाज़ नहीं आता तो मैं अच्छाई से क्यूँ बाज़ आऊं!

2. मजदूरों जैसी ज़िन्दगी


हजरत सिद्दीक अकबर रज़ी० खलीफा हो गए थे. उनके वेतन पर विचार किया जा रहा था| उन्होंने कहा कि मदीने में एक मजदूर की रोजाना की कमाई कितनी है… उतनी ही रक़म मेरे लिए भी तय कर दी जाये| यह सुन, साथियों में से कोई बोला- सिद्दीक इतनी कम रक़म में आपका गुज़ारा कैसे होगा? हजरत सिद्दीक ने जवाब दिया- मेरा गुज़ारा उसी तरह होगा जिस तरह एक मजदूर का होता है| अगर न हुआ तो मैं मजदूरों की आमदनी बढ़ा दूंगा ताकि मेरा वेतन भी बढ़ जाये| जैसे-जैसे मजदूरों की मजदूरी बढ़ेगी मेरी ज़िन्दगी का स्तर भी बढ़ता जायेगा|

3. पड़ोसी 


इमाम अबू हनीफ के पड़ोस में एक मोची रहता था| वह दिन भर तो अपनी झोंपड़ी के दरवाज़े पर सुकून से बैठकर जूते गांठता रहता मगर शाम को शराब पीकर उधम मचाता और जोर-जोर से गाने गाता| इमाम अपने मकान के किसी कोने में रात भर हर चीज़ से बेपरवा इबादत में मशगूल रहते| पडोसी का शोर उनके कानो तक पहुँचता मगर उन्हें कभी गुस्सा नहीं आता| एक रात उन्हें उस मोची का शोर सुनाई नहीं दिया | इमाम बेचैन हो गए और बेचैनी से सुबह का इंतज़ार करने लगे| सुबह होते ही उन्होंने आस-पड़ोस में मोची के बारे में पूछा| मालूम हुआ कि सिपाही उसे पकड़ कर ले गए हैं क्यूंकि वह रात में शोर मचा मचा कर दूसरों कि नींदें हराम करता था|

उस समय खलीफा मंसूर की हुकूमत थी. बार-बार आमंत्रित करने पर भी इमाम ने कभी उसकी देहलीज़ पर कदम नहीं रखा था| मगर उस रोज़ वह पडोसी को छुड़ाने के लिए पहली बार खलीफा के दरबार में पहुंचे| खलीफा को उनका मकसद मालूम हुआ तो वह कुछ देर रुका फिर कहा – “हजरत ये बहुत ख़ुशी का मौका है कि आप दरबार में तशरीफ़ लाये| आपकी इज्ज़त में हम सिर्फ आपके पडोसी नहीं बल्कि तमाम कैदियों कि रिहाई का हुक्म देते हैं|“ इस वाकये का इमाम के पडोसी पर इतना गहरा असर हुआ कि उसने शराब छोड़ दी और फिर उसने मोहल्ले वालों को कभी परेशान नहीं किया|

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